Monday, March 10, 2014

लाल कला मंच ने मनाया होली पर रंग अबीर उत्सव

Abir red colors on Holi festival celebrated by the art platform  

New Dilli: The Lal arts , Cultural and Social consciousness Forum (Rjil)  Social Fraternity on the occasion of the Holy Festival of Holi this year as every year seminar and Cultural programs Combining Poetry as A mustard   Color Abir Celebration -201 4 (Poetry Goshti and Cultural programs) organized Alpha Educational Institute , Dr.. TI Senior Campus Samajasevi KK Mitapur   IMMUTABLE was headed. All comrades Jagdish Chandra Sharma beginning of the program by lighting the lamp. Then Lal Bihari Lal  Saraswati Vandana - Give God the Mother / lore Sung - Sung / Fill Prosperity for everyone ,  originated from. Comrade Jagdish Chandra Sharma as the guest of the program , the Socialist SPIRIT Rama Panchal, Girish Mishra and the editor of Hello Magazine Devoted Prince were Bhojpuri Net and print. This was A Combination of Shri Lal Bihari Lal programs and Operations of the Delhi Ratna Ojha and Shiva Prabhakar Senior writer.  Delhi on the occasion of the triple languages ​​(English, Bhojpuri, and Angraji) Hello Magazine published monthly in Bhojpuri March 2 014 ( Holi Special) points was dedicated by guests. Institution was honored guests by various magazines.
       In this program, Cultural programs by various Dozens of Children from different schools and Local poets who Participated in the ceremony - Mhton Rakesh , Ravi Shankar , Kripa Shankar , KP Singh, Diwakar Mishra, Lal Bihari Lal said -
              Holi  - Holi like to get together to celebrate.
              Save the Miz Joules scattered color of happiness ..
The Alaven , Dr.. R.. P. Singh, Rajesh Kumar, Ramakant Das, Bhavani Shankar Shukla, MA. Giriraj Sharma, Jai Prakash Gautam, MS Darling, Sky mad, Sursh Friadivijay Kumar Mishra, Gaurav Bindal, Murari Kumar , Manoj Singh, Malkhan Saifi, p, s. Bharti, including Umesh Chandra Gny - Maud pate were valid. Finally, its chairman Mrs. Sonu Gupta   Kvio , guests and Thanked the Teachers, who came from different schools including Children.  

     Presentation
 Lal Bihari Lal Gupta , 
 Secretary Red Art Forum

Phone -9,868,163,073

Wednesday, March 5, 2014

रविवार की शाम कवियो के नाम


Kaby organizing seminars and honors
Lal Bihari Lal
New Delhi. Triveni quarterly literary magazine published in languages, literature threefold from Kolkata, chief editor of Hindi literature in honor of Dr. Kuwanr Veer Singh Martanda Committee Paschim Vihar, New Delhi poetic symposium organized by the president of the OP Bishnoi '' Sudhakar '' Priyadarshini apartment residence was in New Delhi. The seminar was chaired by senior writer Batla Umesh Mehta and Swati operation. Savita Inamdar Kvio participating in the seminar, Mr. Usha, Swati Batla, OP Bishnoi   '' Sudhakar '' , Umesh Lal Bihari Lal Mehta and the environment were addicted boyfriend.

    On this occasion, red, art, cultural and social consciousness Forum (Rjil) Dwara Dr. K. Bir Singh Martanda contribution to the literary term for them - were honored seeker. O Dr. Martanda. P. Bishnoi some of his published books presented.



Tuesday, July 23, 2013

सावन पर विशेष

कल्याणकारी शिव बनें

                               लाल बिहारी लाल 




भारतीय संस्कृति में हरेक महिनों में तीज-त्यौहार मनाया जाता है तथा सप्ताह के प्रत्येक दिन भी किसी न किसी देवी या देवता को समर्पित है।
भगवान शिव को दिनो में सोमवार तथा महिनों में सावन महिना काफी प्रिय है। भगवान शिव के वासानुसार सावन महिनें में धरती पर वास करते हैं और इनका रुप कल्याणकारी होते हैं। किसी कारणवश अगर आपको साल भर समय न मिला हो और आपने भगवान शिव की पूजा नहीं की है तो इस महिने शिव-शिव जपते रहिए आपका कल्याण अवश्य ही होगा। इस माह भगवान शिव सपरिवार धरती पर वास करते हैं जिससे इस माह में प्रकृति के कण-कण सजीव हो उठते हैं और चारो  तरफ हरियाली देखकर मन में आनंद का संचार हो आता है।
   सावन मास आते ही बम-बम की जयकार से शिवालय गुंजायमान हो जाता है। भक्त गण गेरुआ वस्त्र धारण कर करीब के गंगाजल स्त्रोत से गंगाजल भरकर घर के पास शिवालयों में या गरीवनाथ(मुजफ्फरपुर,बिहार), बाबाधाम,
(देवघर,भारखंड),गंगाजल  कांवर के रुप में प्रत्येक सोमवार को भोलेनाथ को समर्पित  करते हैं।
   सृष्टि के निर्माण में  शिव की ईच्छा  से ही रजोगुण धारण करने वाले ब्रम्हा,सत्वगुण रुप विष्णु एवं तमोगुण रुप रुद्र हैं जो क्रमशःसृजन(निर्माण),रक्षण(पालन),तथा संहार का कार्य करते हैं। ये तीनों  वास्तव में सदाशिव के ही रुप है। इसलिए वे शिव से अलग नहीं हैं। ब्रम्हा,विष्णु एवं महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है। इनमें भेद करना उचित नहीं है।
दार्शनिक मान्यता के अनुसार ब्रम्हांड पांच तत्वो से बना है। ये 5 तत्व हैं-जल, पृथ्वी, अग्नि,वाय़ु और आकाश। भगवान शिव पंचानन है।  अर्थात इनके पांच मुख है। शिवपुरान में इनके 5 रुपों का उल्लेख है। ये 5 रुप है-
1.ईसान
2.तत्पुरुष
3.अघोर
4.वाम देव
5.सद्योजात

1.      ईसान-भगवान शिव के उर्ध्र्वमुख का नाम ईसान है। इसका वर्ण दुग्ध जैसा है। यह आकाश तत्व के स्वामी है। ईसान का अर्थ सबका स्वामी से है।ईसान पंचमूर्ति महादेव की क्रीडामूर्ति है।
2.तत्वपुरुषः-भगवान शिव के पूर्व मुख का नाम तत्वपुरुष  है। इसका वर्ण पीला तथा वायु तत्व के स्वामी है।तत्त्पुरुष तपोमूर्ति के स्वामी है।
   3. अघोरः- भगवान शिव के दक्षिण मुख का नाम अघोर है। इसका वर्ण नीला है। अघोर शिवशंकर संहारी रुप है। जो भक्तो पर आए हुए संकटो को दूर करती है। यह अग्नि तत्व के स्वामी है।
4.वामदेवः-भगवान शिव के उतरी मुख का नाम वामदेव है। जिसका वर्ण कृष्णवर्ण है ।यह जल तत्व के स्वामी है। वामदेव विकारो का नाश करने वाले हैं. इनके आश्रय में  जाने पर पंच विकार-काम क्रोध,मद,लोभ,और मोह नष्ट हो जाते हैं।
    5.सद्योपातः- भगवान शिव के पश्चिमी मुख का नाम सद्योपात है। इसका वर्ण श्वेत है तथा पृथ्वी तत्व के स्वामी है। और बालक के समान निश्छल,परम,स्वच्छ,शुद्ध और निर्विकार हैं। सद्योपात से अज्ञान रुपी अंधकार को हटाकर ज्ञान रुपी प्रकाश का संचार होता है।भगवान शिव को पंचतत्वों के स्वामी होने के कारण इन्हें भूतनाथ कहते हैं।
    शिव का अर्थ कल्याकारी है। समस्त ब्रम्हांड में एक मात्र देवों के देव महादेव ही है जिनकी पूजा नर, नारायण के साथ साथ असूर भी करते हैं। इनकी पूजा सगुन साकार मूर्ति रुप में एव निर्गूण निराकार शिवलिंग दोनो ही रुपों में होती है।समुंद्र मंथन के समय भगवान शिव ही जनकल्याण की भावनावश लाहल(विष) कर नीलकंठ हो गए। भगवान शिव करुणासिंधू,भक्त वतसल्य होने के कारण भक्त की भावना के वशीभूत होकर उसकी मनोकामना पूरी करते हैं।
     भगवान शिव की पूजा तभी सफल होगी जब भक्त शिव के समान त्यागी,परोपकारी,संयमी,साधनाशीलऔर सहिष्णु होगा।भगवान शंकर धर्म  अर्थात कर्तब्यों के अधिकारी हैं।शिव जी की आराधना में कर्म(कर्मकांड) का नहीं बल्कि मर्म(भावना) की प्रधानता है।यो अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इसी कारण इन्हें आशुतोष भी कहा गया है।जिस प्रकार समुंद्र मंथन के समय विष पीकर  इन्होने देवताओं को संकट से बचाया था इसी प्रकार इनके भक्तों को भी उनका अनुसरण करते हुए अपने कर्तब्यों का पालन करना चाहिए।
     शिव तत्व को जीवन में अपनाना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है। हमारा लक्ष्य भी यही होना चाहिए। तभी शिव आराधना सफल हो पायेगा और सावन का पूरा लाभ मिलेगा।   
    265ए/7, शक्ति विहार,बदरपुर,नई दिल्ली-44





Monday, June 3, 2013


लाल कला मंच एवं हिन्दी अकादमी दिल्ली संयुक्त रुप से बिश्व पर्यावरण दिवस पर कार्यक्रम आयोजित
नई दिल्लीः लाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच(रजि.) तथा हिन्दी अकादमी दिल्ली के संयुक्त तात्वावधान  में विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर विश्व में बिगडते हुए पर्यावरण के संरक्षण में युवाओं की भूमिका पर एक परिचर्चा एवं काव्य गोष्ठी का आयोजन लाल किरण बिल्डिंग्स,मीठापुर में किया गया। जिसमें  वक्ता के रुप में डा. अख्तर अंसारी एवं बल्लवगढ कालेज के पूर्व प्रो.(आचार्य) हवलदार सिंह शास्त्री तथा रतन सिंह ने भाग लिया। इन्होंने पर्यावरण संरक्षण पर युवाओं की भूमिका पर कहा कि आज के नई पीढी ही इसमें अहम भूमिका निभा सकती है।क्येकि वर्तमान पीढी इस पर उदासीन होते जा रही है। इसी अवसर पर पर्यावरण प्रेमी लाल विहारी लाल ने कहा कि पर्यावरण  संरक्षण  के लिए इसकी विगडती हुई दशा के रफ्तार को कम किया जा सकता है क्योकि बढती हुई आवादी की आवश्यकताओं का पूर्ति प्रकृति ही करती है इसलिए इसे अपने छोटे-छोटे कर्मों से इसे कम किया जा सकता है। जैसे.कागज के दोनों पन्नों पर लिखना,रद्दी कापी से बचे हुए पन्नें को अलग कर एक नई कापी खुद को बनाना,पालिथीन के स्थान पर कपडे का बैग उपयोग में लाना, घर के हर सदस्यों का एक अलग-अलग गिलास हो जिसे बार-बार धोने के लिए पानी की बर्वादी न हो। बिजली एवं पानी के बर्बादी को रोकना तथा एक्वा गार्ड में निकले बेकार पानी को संचय कर इसे घरेलू वागवानी में उपयोग मे लाने सहित अन्य छोटे-छोटे उपाय द्वारा इसे संरक्षित किया जा सकता है। इस अवसर पर भारतीय संस्कृति के प्रतीक  तुलसी के पौधो का भी लाल कला मंच द्वारा वितरण  किया गया।
   पर्यावरण पर आधारित रचनाओं का काव्य पाठ भी किया गया  जिसमें भाग लेने वाले कवि थे-डा.ए.कीर्तिवर्धन, इसरार अहमद,पर्यावरणप्रेमी लाल बिहारी लाल,श्री शिव प्रभाकर ओझा ,श्री महेन्द्र गुप्ता प्रीतम ,आकाश पागल,सुरेश मिश्रा,संचालन दिल्ली एथेंस के लेखक श्री सुमित प्रताप सिंहने किया । इसके अलावे श्री अर्श अमृतसरी के गजल संग्रह जिन्दगी गजल है लोकार्पण किया अतिथियों द्वारा किया गया । इस कार्यक्रम के में अतिथि वरिश्ठ पत्रकार राजकुमार अग्रवाल थे। संयोजन दिल्ली रत्न  लाल बिहारी लाल का तथा अध्यक्षता कामरेड जगदीश चंद्र शर्मा ने किया। इस अवसर पर हिन्दी अकादमी ,दिल्ली से प्रतिनिधि के रुप में श्री जगदीश चंद्र मौयूद थे। अंत में संस्था की अध्यक्षा श्रीमती सोनू गुप्ता ने  सभी आगन्तुको का धन्यवाद ज्ञपन किया।
                                  






प्रस्तुतिः श्री लाल बिहारी लाल(सचिवःलाल कला मंच,नई दिल्ली)
फोन-09868163073

Sunday, April 28, 2013

सांस्कृतिक पतन का दंश घर-घर में कंसःलाल बिहारी लाल

नई दिल्लीःभारत में जनसंख्या विस्फोट के कारण यहां की आबादी हाथी के सूढ की तरह पल-पल बढ रही है। ऐसे में हर घर को और हर घर में हर हाथ को काम की जरुरत है। इसलिए यहां पर भारत के प्रत्येक नागरिक  आज रोटी के जुगाड में दो को चार बनाने में ब्यस्त है। ऐसे में अपने बच्चों पर ध्यान नहीं दे पाता है परिणाम स्वरुप बच्चें  सांस्कृतिक एवं सांस्कारिक घूंटी से वंचित रह जाते हैं। नतीजा आज के बच्चें सामाजिक ताना-बाना से अवगत नहीं हो पाते है और पश्चिमी सभ्यता की गोद में चले जाते है। इस तरह उनका टोलरेंस क्षमता जीरो हो जाती है और वे बात-बात आग बबूला हो जाते है और हल्की सी बात पर भी किसी को मारने पर उतारु हो जाते है। यह आधुनिक सामाज के लिए घातक सिद्ध हो रही है।   समाज में आज बहू-बेटियो की इज्जत सलामत नहीं है और घर-घर में कंस-सा हालात बनते जा रहे हैं।
   बसंन्त बिहार जैसी घटनायें रोज-रोज देश एवं सामाज में घटती है। इसलिए जरुरी है कि इस सारी फसाद की जननी आबादी को रोकने का प्रयास निष्पक्ष भाव से किया जाए। जब आबादी कम होगी तो विभिन्न समस्यायें अपने आप कम हो जायेगी तथा लडका एवं लडकी के अनुपात का अंतर भी कम हो पायेगा तथा कन्या भ्रूणहत्या जैसी जघन्य अपराध भी नही होंगे। महंगाई का भूत भी कम सतायेगा तभी कुछ देश की वर्तमान स्थिति में सुधार की उम्मीद ब्यक्त की जा सकती है वरना देश की दशा और दयनीय होगी ।
 देश की दशा सुधारने के लिए आज जरुरी है कि आबादी रोकने के साथ-साथ यहां के बच्चों में सांस्कारिक स्थिति सुधारने के लिए आज जरुरी है कि आबादी रोकने के साथ-साथ आज के बच्चों को बचपन में ही  सांस्कारिक घूंटी भी पिलाया जाये तभी वसंत विहार जैसी घटनाओं से मुक्ति मिल सकती है।
लाल बिहारी लाल
सचिवः लाल कला मंच,नई दिल्ली
फोन-09868163073

Tuesday, April 23, 2013

राष्ट्रकवि दिनकर जी की पुण्यतिथि पर विशेष


लाल बिहारी लाल

जन्मः 23 सितम्बर 1908 देहान्तः 24 अप्रैल 1974

आधुनिक हिंदी काव्य में राष्ट्रीय सांस्कृतिक चेतना का शंखनाद करने वाले तथा युग चारण नाम से विख्यात । दिनकर जी का जन्म 23 सितम्बर 1908 ई0 को बिहार के तत्कालीन मुंगेर(अब बेगुसराय) जिला के सेमरिया घाट नामक गॉव में हुआ था। इनकी शिक्षा मोकामा घाट के स्कूल तथा पटना कॉलेज में हुई जहॉ से उन्होने इतिहास विषय लेकर बी ए (आर्नस) किया था ।

एक विद्यालय के प्रधानाचार्य, बिहार सरकार के अधीन सब रजिस्टार,जन संपर्क विभाग के उप निदेशक, लंगट सिंह कॉलेज, मुज्जफरपुर के हिन्दी विभागाध्यक्ष, 1952 से 1963 तक राज्य सभा के सदस्य,1963 में भागलपुर विश्वविद्यालय के कुलपति
,1965 में भारत सरकार के हिन्दी सलाहकार (मृत्युपर्यन्त) आदी जैसे विभिन्न पदो को
सुशोभित किया एवं अपने प्रशासनिक योग्यता का परिचय दिया।
साहित्य सेवाओं के लिए इन्हें डी लिट् की मानद उपाधि, विभिन्न संस्थाओं से इनकी पुस्तकों पर पुरस्कार। इन्हें 1959 में साहित्य आकादमी एवं पद्मविभूषण सम्मान से सम्मानित किया गया । 1972 में काव्य संकलन उर्वशी के लिए इन्हें 
ज्ञानपीठ पुरस्कार द्वारा सम्मानित किया गया था।
दिनकर के काव्य में परम्मपरा एवं आधुनिकता का अद्वितीय मेल है
राष्ट्रीयता दिनकर की काव्य चेतना के विकास की एक अपरिहार्य कडी है। उनका राष्ट्रीय कृतित्व इसलिए प्राणवाण है कि वह भारतवर्ष की सामाजिक,संस्कृतिक और उनकी आशा अकाकांक्षाओं को काव्यात्मक अभिव्यक्ति प्रदान करने में सक्षम है। वे वर्त्तमान के वैताली ही नहीं बल्कि मृतक विश्व के चारण की भूमिका भी उन्हें निभानी पडी थी ।
परम्मपरा एवं आधुनिकता की सीमाओं से निकलकर उनका ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक दृष्टिकोण ही दिनकर की राष्ट्रीयता के फलक को व्यापक बनाती है।
दिनकर के काव्य में जहॉ अपने युग की पीडा का मार्मिक अंकन हुआ है,वहॉ वे शाश्वत और सार्वभौम मूल्यों की सौन्दर्यमयी अभिव्यक्ति के कारण अपने युग की सीमाओं का अतिक्रमण किया है। अर्थात वे कालजीवी एवं कालजयी एक साथ रहे हैं।
राष्ट्रीय आन्दोलन का जितना सुन्दर निरुपण दिनकर के काव्य में उपलब्ध होता है,उतना अन्यत्र नहीं? उन्होने दक्षिणपंथी और उग्रपंथी दोनों धाराओं को आत्मसात करते हुए राष्ट्रीय आन्दोलन का इतिहास ही काव्यवद्ध कर दिया है। 
सन 1929 में 25 अक्टूबर को लॉर्ड इरविन ने जब गोलमेज सम्मेलन की घोषणा की तो युवको ने विरोध किया । तत्कालीन भारत मंत्री वेजवुड के द्वारा उक्त ब्यान को 1917
वाले वक्तव्य का पुर्नरावृति माना । 1929 में कांग्रेस का भी मोह भंग हो गया । तब दिनकर जी ने प्रेरित होकर कहा था-
टूकडे दिखा-दिखा करते क्यों मृगपति का अपमान ।
ओ मद सत्ता के मतवालों बनों ना यूं नादान ।। 
स्वतंत्रता मिलने के बाद भी कवि युग धर्म से जुडा रहा। उसने देखा कि स्वतंत्रता उस व्यक्ति के लिए नहीं आई है जो शोषित है बल्कि उपभोग तो वे कर रहें हैं जो सत्ता के 
केन्द्र में हैं। आमजन पहले जैसा ही पीडित है, तो उन्होंने नेताओं पर कठोर व्यंग्य करते हुए राजनीतिक ढाचे को ही आडे हाथों लिया-
टोपी कहती है मैं थैली बन सकती हू ।
कुरता कहता है मुझे बोरिया ही कर लो।।
ईमान बचाकर कहता है ऑखे सबकी,
बिकने को हू तैयार खुशी से जो दे दो ।।
दिनकर व्यष्टि और समष्टि के सांस्कृतिक सेतु के रुप में भी जाने जाते है, जिससे इन्हें राष्ट्रकवि की छवि प्राप्त हुई। इनके काव्यात्मक प्रकृति में इतिहास, संस्कृति एवं राष्ट्रीयता
का वृहद पूट देखा जा सकता है ।
दिनकर जी ने राष्ट्रीय काव्य परंपरा के अनुरुप राष्ट्र और राष्ट्रवासियों को जागृत और उदबद बनाने का अपना दायित्व सफलता पूर्वक सम्पन्न किया है। उन्होने अपने पूर्ववर्ती राष्ट्रीय कवियों की राष्ट्रीय चेतना भारतेन्दू से लेकर अपने सामयिक कवियों तक आत्मसात की और उसे अपने व्यक्तित्व में रंग कर प्रस्तुत किया। किन्तु परम्परा के सार्थक निर्वाह के साथ-साथ उन्होने अपने आवाह्न को समसामयिक विचारधारा से जोडकर उसे सृजनात्मक बनाने का प्रयत्न भी किया है। “उनकी एक विशेषता थी कि वे साम्राज्यवाद के साथ-साथ सामन्तवाद के भी विरोधी थे। पूंजीवादी शोषण के प्रति उनका दृष्टिकोण अन्त तक विद्रोही रहा। यही कारण है कि उनका आवाह्न आवेग धर्मी होते हुए भी शोषण के प्रति जनता को विद्रोह करने की प्रेरणा देता है ।’’ अतः वह आधुनिकता के धारातल का स्पर्श भी करता है । 
इनकी मुख्य कृतियॉः
*काव्यात्मक-रेणुका,द्वन्द गीत, हुंकार(प्रसिद्धी मिली),रसवन्ती(आत्मा बसती थी)चक्रवात. धूप-छांव, कुरुक्षेत्र, रश्मिरथि(कर्ण पर आधारित), नील कुसुम, सी.पी. और शंख, उर्वशी (पुरस्कृत), परशुराम प्रतिज्ञा, हारे को हरिनाम आदि।
गद्य- संस्कृति का चार अध्याय, अर्द नारेश्वर, रेती के फूल, उजली आग,शुध्द कविता की खोज, मिट्टी की ओर,काव्य की भूमिका आदि ।



265ए/7 शक्ति विहार, 
बदरपुर,नई दिल्ली-110044

Monday, April 1, 2013

लाल कला मंच द्वारा रंग अबीर उत्सव-2013

 लाल कला मंच द्वारा रंग अबीर उत्सव-एवं सम्मान समारोह-2013 समपन्न  

नई दिल्लीःलाल कला,सांस्कृतिक एवं सामाजिक चेतना मंच(रजि.) द्वारा सामाजिक भाईचारे का पावन पर्व होली के शुभ अवसर पर एक सरस काव्य गोष्ठी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मिला जुला रुप  रंग अबीर उत्सव-2013(काव्य गोष्टी एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम) का आयोजन अल्फा शैक्षणिक संस्थान,मीठापुर के प्रांगण में वरिष्ठ सामाजसेवी मास्टर डंबर सिंह की  अध्यक्षता में समपन्न हुआ। इस कार्यक्रम की शुरुआत लाल बिहारी लाल के सरस्वती वंदना-ऐसा माँ वर दे/विद्या के संग-संग/सुख समृद्धि से सबको भर दे, से शुरु हुआ। कार्यक्रम के अतिथि कामरेड जगदीश चंद्र शर्मा,मीठापुर के पूर्व निगम पार्षद महेश आवाना, समाजवादी आत्मा राम पांचाल तथा गौरव बिन्दल थे। इस कार्यक्रम का संयोजन दिल्ली रत्न श्री लाल बिहारी लाल का था तथा संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डा. ए. कीर्तिबर्धन ने किया। इस अवसर पर कवियों एवं बच्चों को संस्था द्वारा काव्य सेवी सम्मान अतिथियों द्वारा एवं अतिथियों को डा.आर कान्त एवं डा.के.के. तिवारी द्वारा समाजसेवी सम्मान से सम्मानित किया गया। सम्मान स्वरुप अंग वस्त्र एवं सम्मान-पत्र प्रदान किया गया।
इस कार्यक्रम में स्थानीय विभिन्न स्कूलों के बच्चों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रम एवं दर्जनों
कवियों ने भी इस समारोह मे भाग लिया जिसमें-राकेश महतों, रवि शंकर, कृपा शंकर,दिनेश चन्द्र पाण्डेय, लाल बिहारी लाल ने कहा- 
                             होली  होली की तरह मिल के मनायें संग।
                             जतन करें मिज जूल के बिखरे खुशी के रंग।।
ओइसक् अलावें डा.ए.कीर्तिबर्धन, सुश्री शिवरंजनी,,श्री के.पी. सिंह,श्री राकेश कन्नौजी, डा. सी.एन.शर्मा, हवलदाऱ शास्त्री,ब्रजवासी तिवारी मा.डंबर सिंह तनवर आदी प्रमुख थे। तुलसी शर्मा, मुरारी कुमार, महेश सिंगला, मलखान सैफी, श्रीमती शारदा गुप्ता,श्री मनोज गुप्ता सहित अनेक गन्य-मान्य ब्यक्ति मैयूद थे। अन्त में संस्था के आध्यक्ष श्रीमती सोनू गुप्ता ने  कवियो, अतिथियों एवं विभिन्न स्कूल से आये हुए बच्चों को धन्यवाद  दिया।                                                           
 
                                                            प्रस्तुतिः  लाल बिहारी गुप्ता लाल
                                                            सचिव लाल कला मंच,नई दिल्ली
                                                                   फोन-9868163073