Tuesday, July 23, 2013

सावन पर विशेष

कल्याणकारी शिव बनें

                               लाल बिहारी लाल 




भारतीय संस्कृति में हरेक महिनों में तीज-त्यौहार मनाया जाता है तथा सप्ताह के प्रत्येक दिन भी किसी न किसी देवी या देवता को समर्पित है।
भगवान शिव को दिनो में सोमवार तथा महिनों में सावन महिना काफी प्रिय है। भगवान शिव के वासानुसार सावन महिनें में धरती पर वास करते हैं और इनका रुप कल्याणकारी होते हैं। किसी कारणवश अगर आपको साल भर समय न मिला हो और आपने भगवान शिव की पूजा नहीं की है तो इस महिने शिव-शिव जपते रहिए आपका कल्याण अवश्य ही होगा। इस माह भगवान शिव सपरिवार धरती पर वास करते हैं जिससे इस माह में प्रकृति के कण-कण सजीव हो उठते हैं और चारो  तरफ हरियाली देखकर मन में आनंद का संचार हो आता है।
   सावन मास आते ही बम-बम की जयकार से शिवालय गुंजायमान हो जाता है। भक्त गण गेरुआ वस्त्र धारण कर करीब के गंगाजल स्त्रोत से गंगाजल भरकर घर के पास शिवालयों में या गरीवनाथ(मुजफ्फरपुर,बिहार), बाबाधाम,
(देवघर,भारखंड),गंगाजल  कांवर के रुप में प्रत्येक सोमवार को भोलेनाथ को समर्पित  करते हैं।
   सृष्टि के निर्माण में  शिव की ईच्छा  से ही रजोगुण धारण करने वाले ब्रम्हा,सत्वगुण रुप विष्णु एवं तमोगुण रुप रुद्र हैं जो क्रमशःसृजन(निर्माण),रक्षण(पालन),तथा संहार का कार्य करते हैं। ये तीनों  वास्तव में सदाशिव के ही रुप है। इसलिए वे शिव से अलग नहीं हैं। ब्रम्हा,विष्णु एवं महेश तात्विक दृष्टि से एक ही है। इनमें भेद करना उचित नहीं है।
दार्शनिक मान्यता के अनुसार ब्रम्हांड पांच तत्वो से बना है। ये 5 तत्व हैं-जल, पृथ्वी, अग्नि,वाय़ु और आकाश। भगवान शिव पंचानन है।  अर्थात इनके पांच मुख है। शिवपुरान में इनके 5 रुपों का उल्लेख है। ये 5 रुप है-
1.ईसान
2.तत्पुरुष
3.अघोर
4.वाम देव
5.सद्योजात

1.      ईसान-भगवान शिव के उर्ध्र्वमुख का नाम ईसान है। इसका वर्ण दुग्ध जैसा है। यह आकाश तत्व के स्वामी है। ईसान का अर्थ सबका स्वामी से है।ईसान पंचमूर्ति महादेव की क्रीडामूर्ति है।
2.तत्वपुरुषः-भगवान शिव के पूर्व मुख का नाम तत्वपुरुष  है। इसका वर्ण पीला तथा वायु तत्व के स्वामी है।तत्त्पुरुष तपोमूर्ति के स्वामी है।
   3. अघोरः- भगवान शिव के दक्षिण मुख का नाम अघोर है। इसका वर्ण नीला है। अघोर शिवशंकर संहारी रुप है। जो भक्तो पर आए हुए संकटो को दूर करती है। यह अग्नि तत्व के स्वामी है।
4.वामदेवः-भगवान शिव के उतरी मुख का नाम वामदेव है। जिसका वर्ण कृष्णवर्ण है ।यह जल तत्व के स्वामी है। वामदेव विकारो का नाश करने वाले हैं. इनके आश्रय में  जाने पर पंच विकार-काम क्रोध,मद,लोभ,और मोह नष्ट हो जाते हैं।
    5.सद्योपातः- भगवान शिव के पश्चिमी मुख का नाम सद्योपात है। इसका वर्ण श्वेत है तथा पृथ्वी तत्व के स्वामी है। और बालक के समान निश्छल,परम,स्वच्छ,शुद्ध और निर्विकार हैं। सद्योपात से अज्ञान रुपी अंधकार को हटाकर ज्ञान रुपी प्रकाश का संचार होता है।भगवान शिव को पंचतत्वों के स्वामी होने के कारण इन्हें भूतनाथ कहते हैं।
    शिव का अर्थ कल्याकारी है। समस्त ब्रम्हांड में एक मात्र देवों के देव महादेव ही है जिनकी पूजा नर, नारायण के साथ साथ असूर भी करते हैं। इनकी पूजा सगुन साकार मूर्ति रुप में एव निर्गूण निराकार शिवलिंग दोनो ही रुपों में होती है।समुंद्र मंथन के समय भगवान शिव ही जनकल्याण की भावनावश लाहल(विष) कर नीलकंठ हो गए। भगवान शिव करुणासिंधू,भक्त वतसल्य होने के कारण भक्त की भावना के वशीभूत होकर उसकी मनोकामना पूरी करते हैं।
     भगवान शिव की पूजा तभी सफल होगी जब भक्त शिव के समान त्यागी,परोपकारी,संयमी,साधनाशीलऔर सहिष्णु होगा।भगवान शंकर धर्म  अर्थात कर्तब्यों के अधिकारी हैं।शिव जी की आराधना में कर्म(कर्मकांड) का नहीं बल्कि मर्म(भावना) की प्रधानता है।यो अतिशीघ्र प्रसन्न हो जाते हैं। इसी कारण इन्हें आशुतोष भी कहा गया है।जिस प्रकार समुंद्र मंथन के समय विष पीकर  इन्होने देवताओं को संकट से बचाया था इसी प्रकार इनके भक्तों को भी उनका अनुसरण करते हुए अपने कर्तब्यों का पालन करना चाहिए।
     शिव तत्व को जीवन में अपनाना ही शिवत्व को प्राप्त करना है और यही शिव होना है। हमारा लक्ष्य भी यही होना चाहिए। तभी शिव आराधना सफल हो पायेगा और सावन का पूरा लाभ मिलेगा।   
    265ए/7, शक्ति विहार,बदरपुर,नई दिल्ली-44





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